आनन्दधारा आध्यात्मिक मंच एवं वार्षिक पत्रिका

सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्द:खभाग्भवेत्


Sri Chandji

उदासीन आचार्य जगत् गुरु श्रीचन्द्र जी भगवान्-भगवान् श्रीचन्द्र जी महाराज का प्रादुर्भाव भाद्रपद शुक्ला नवमी वि० संवत् १५५१ तद् नुसार ई० सन् १४९४ खड़गपुर तहसील के तलवंडी गांव में श्री गुरु नानक देव जी के यहां हुआ|
Sri Chandji, Eldest S/o Guru Nanak Dev

Sri Chandji, Eldest S/o Guru Nanak Dev

     भगवान् श्रीचन्द्र जी महाराज के जन्म के सम्बन्ध में एक अद्भुत कथा प्रचलित है| जिस समय भगवान् श्रीचन्द्र जी का प्रादुर्भाव हुआ उस समय सनातन धर्म का अस्तित्व संकट से घिरा हुआ था| मुस्लिम अत्याचारियों से हिन्दुओं की बहु-बेटियां व पूजा स्थल सुरक्षित नहीं थे| पीड़ित हिन्दुओं की करुन पुकार सुनकर भगवान् का आसन भी डोल गया| भगवान् विष्णु ने विचार किया कि कोई स्वरुप धारण कर सनातन संस्कृति की रक्षा करनी चहिए और धर्म-प्रचार के माध्यम से विधर्मियों को दंडित करना चहिए| भगवान् विष्णु ने इस सम्बन्ध मे कैलासवासी औढ़रदानी
भगवान् सदाशिव से सलाह कर उन्हीं से अवतार लेने का आग्रह किया|

     भगवान् विष्णु ने कहा हे ! भगवान् शिव जी आप ही उदासीन साधुरुप में प्रकट होकर आयुधरहित अपनी वचन रुपी तलवार से अत्याचारियों के अत्याचार से हिन्दु जाति व सनातन धर्म की रक्षा करें| इस प्रकार स्वयं भगवान् सदाशिव ने कलियुग में गुरुनानक देव जी महाराज की धर्म पत्नी देवी सुलक्षणा जी के गर्भ से जन्म लिया और श्रीचन्द्र नाम पाया| इस संसार में दो महापुरुष पैदा हुए जिनके जन्मजात कानों में कुण्डल थे| सूर्य पुत्र कर्ण और भगवान् श्रीचन्द्र जी महाराज|

     उदासीनाचार्य जगतगुरु भगवान् श्रीचन्द्र जी महाराज इस पावन भूमि पर १४९ वर्ष तक जीवित रहे| इस लम्बी आयु में उन्होंने उदासीन सम्प्रदाय, सनातन वैदिक संस्कृति, राष्ट्र एवं लोक-कल्याण हित में अंगणित कार्य किए| शंकरावतार देश-धर्म रक्षक भगवान् श्रीचन्द्र जी ने अपने जीवन का उद्देश्य लोककल्याण और लोकमंगल करने मे ही सुनिश्चित किया|

     भगवान् श्रीचन्द्र जी महाराज का कहना था-यदि तुम वास्तविक सुख चाहते हो, शान्ति चाहते हो अथवा आनन्द चाहते हो तो- 'मन को मार करो असवारी' || मात्राशास्त्र का सूत्र ||